Thursday, 1 August 2019

Best Parenting Solution

"बाज़" ऐसा पक्षी जिसे हम ईगल भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसी Tough and tight training किसी भी ओर की नही होती।
मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 Kmt. ऊपर ले जाती है। जितने ऊपर आधुनिक जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है।

यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा। उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है? तेरी दुनिया क्या है? तेरी ऊंचाई क्या है? तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।
धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 Kmt. उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। 7 Kmt. के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते है।
लगभग 9 Kmt. आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है।
अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर दूर है लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती के बिल्कुल करीब आता है जहां से वह देख सकता है उसके स्वामित्व को। अब उसकी दूरी धरती से महज 700/800 मीटर होती है लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है की वो उड़ सके।
धरती से लगभग 400/500 मीटर दूरी पर उसे अब लगता है कि उसके जीवन की शायद अंतिम यात्रा है। फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है।
यह पंजा उसकी मां का होता है जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती है। और उसकी यह ट्रेनिंग निरंतर चलती रहती है जब तक कि वह उड़ना नहीं सीख जाता।

यह ट्रेनिंग एक कमांडो की तरह होती है। तब जाकर दुनिया को एक बाज़ मिलता है अपने से दस गुना अधिक वजनी प्राणी का भी शिकार करता है।
हिंदी में एक कहावत है... *"बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नही उड़ते।"*
बेशक अपने बच्चों को अपने से चिपका कर रखिए पर उसे दुनियां की मुश्किलों से रूबरू कराइए, उन्हें लड़ना सिखाइए। बिना आवश्यकता के भी संघर्ष करना सिखाइए।
वर्तमान समय की अनन्त सुख सुविधाओं की आदत व अभिवावकों के बेहिसाब लाड़ प्यार ने मिलकर, आपके बच्चों को "ब्रायलर मुर्गे" जैसा बना दिया है जिसके पास मजबूत टंगड़ी तो है पर चल नही सकता। वजनदार पंख तो है पर उड़ नही सकता क्योंकि "गमले के पौधे और जंगल के पौधे में बहुत फ़र्क होता है।"
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Tuesday, 30 July 2019

माँ या सासु माँ

#माँ_या_सासु_माँ..........

सुबह 10 बार आवाज़ लगाने पर भी ना उठती कभी,आज 6 बजे उठकर चाय बनाने लगी।अखबार ले आयी,पौधों को पानी दे दिया, पापा को मॉर्निंग वॉक पर जाने के लिए जगाने आ गयी..... आखिर ये चक्कर क्या है। घर के सब लोग अंजली को बड़ी आश्चर्य मुद्रा में देखे जा रहे थे। जब सब के सब्र का बांध टूट गया तो उसने मासूम से लहज़े में कहा," वहाँ ससुराल में थोड़ी कोई होगा मेरे आगे पीछे घूमने के लिये"।

शादी फिक्स हुए अभी 3 महीने ही हुए थे और अंजली की समझ में इतना परिवर्तन , बेटी को बड़ी होते देख सब खुश भी थे और दुखी भी।

शादी हुई, अंजली अपने नए घर आयी। सुबह नींद नही खुलेगी सोचकर वह पूरी रात नहीं सोई। जल्दी नहा धोकर , पूजा कर अपनी पहली रसोई की तैयारी की सोचने लगी। क्या बनाऊ जो सबको अच्छा लगे, बच्चो को भी पसंद आये....इस कशमकश में लगी थी कि एक सहज मीठी सी आवाज़ आयी," अंजली तुम इतना जल्दी क्यों उठ गई बेटा?"।

राहत का चस्का था उन् स्वरों में, अंजली ने पीछे मुड़ के देखा तो सासु माँ हाथ में शादी के हिसाब के कुछ पन्ने लिए खड़ी थी।

" शादी की दौड़भाग में कितना परेशान हो गयी होगी, फिर घरवालो की याद भी आ रही होगी,ऐसे में अगर नींद पूरी नही करोगी तो अपनी तबियत बिगाड़ लोगी"। सासु माँ ने हिसाब के पन्नो को टेबल की ड्रावर में रखते हुए कहा।

ये क्या!!! ये तो बिल्कुल वैसी नही है जैसा मैंने सोचा। मैं तो पिछले कितने महीनों से जल्दी उठने की प्रैक्टिस कर रही थी और यहाँ तो कुछ और ही हो गया।

मेरी पूरी पढ़ाई घर से दूर रह कर हुई थी,होस्टल में, जिस कारण मैं घर के कामों में उतनी कुशल नही थी जितना एक नई बहू को होना चाहये। पहली रसोई में एक रोटी बनाए जाने का रिवाज है हमारे यहां, आटा ज़्यादा गीला हो जाने की वजह से रोटी उतनी गोल नही बनी जितनी बननी चाहये। मन में बहुत डर लग रहा था बहुत बुरा भी लग रहा था। मन ही मन माँ को कोस रही थी क्यों मुझे डांट कर अच्छे से घर का काम नही सिखाया।

सुबह की रस्म जैसे तैसे हुई। सब लोगो के लिए खाना बनाने की तैयारी हो रही थी। मैं किचन में खड़ी समझने की कोशिश कर रही थी कि कुछ प्रयास मैं भी करूँ खाना बनाने का। तभी वही आवाज़ वापस आयी। "अंजली, देखो आज मैं क्या बना रही हूँ? मटर पनीर की सब्ज़ी, गाजर का हलवा और लच्छे पराठे।"

ये क्या !! ये सब तो मेरी पसंद के सामान है ,मेरी फेवरिट डिशेज़। समझ में नही आ रहा था कोई सपने में तो नहीं कह रहा। नहीं नहीं ये तो सासु माँ ही बोल रही है।

मेरे थोड़े सहमे ,थोड़े डरे, थोड़े विस्मयी भावो को शायद भाँप लिया था उन्होंने। वो मेरे पास आई और मुझे बिठाकर बोली

" शादी लड़की की परीक्षा नहीं है अंजली, जहां कदम कदम पर उसे किसी टेस्ट में पास होने पर नंबर दिए जाएं।तुम्हारी शादी केवल मेरे बेटे से नहीं हुई है। जितनी तुम्हारी खुशियों की ज़िम्मेदारी मेरे बेटे की है उतनी हमारी भी। मैं तुम्हे इस घर में केवल काम करवाने, तुम्हारी खूबियों को परखने,तुम्हारी अज़ादी को छीनने, या तुम हमारे लिए क्या क्या बलिदान कर सकती हो ,ये जानने के लिए नही लायी हूँ। मुझे तो सिर्फ एक दोस्त एक साथी चाहये जो मैं कभी कमज़ोर पड़ जाऊ तो मुझे संभाल सके। धागे का वो हिस्सा चाहये जो घर के सारे मोतियों को प्यार और स्नेह की माला में पिरोये रखे।

मैं नही मानती की बहू को सुबह जल्दी उठकर नाहा धोकर पूजा कर लेनी चाहए या उसे खाना बनाने में दक्षता हासिल होनी चाहये। अगर उसे कुछ आना चाहिए तो वो है "प्यार करना"...परिवार से, छोटे छोटे बदलाव से और सबसे ज़रुरी खुद से....हां!!! बिल्कुल ठीक सुना तुमने...जब तक तुम खुद से प्यार नही करोगे तुम खुश नही रह पाओगी। ये शादी तुम्हारे सपनो की क़ुरबानी नही है बेटा, तुम्हारे सपनो की उड़ान है। हम सब तुम्हारे साथ है.... हर कदम, हर पल, हर समय।

और आज हमारे परिवार के नए सहदस्य का स्वागत हम उसकी बनाई हुई पसंदीदा खाने से करके कर रहे हैं।" आज अंजली की शादी को 9 साल हो गए है, लेकिन उसने अपनी शादी से जो सबसे अनमोल रिश्ता कमाया था वो था "माँ" ....हां.... वही सासु माँ अब माँ बन गयी थी। बहुत उतार चढ़ाव देखे थे अंजली ने अपने जीवन में, कभी miscarriage, कभी पैसो की कमी,कभी पति से झगड़ा, कभी बच्चो की टेंशन ,लेकिन आज भी मन से जुड़ीं है वो अपनी सास से। हर पल वो यही कामना करती है की जब उसका बेटा बहु लेकर घर आये तो वो उसकी सास जैसी सास बन सके, या उनका अंश ही सही।

समाज के कुछ हिस्सों में एक भी सास माँ बनने में विश्वास नही रखती पर मेरी गुज़ारिश है ,जब हम किसी लड़की को घर में लाये तो उसको उसकी कमियों के साथ स्वीकार करें, अपने बच्चों को गलतियों पर डांटकर भी तो फिर से उन्हें पुचकार लेते हैं ना, वही हम उनके साथ भी करें।

ये लेख उन सभी सासु माँ को समर्पित है , जिन्होंने अपने प्यार,व्यवहार,सोच से Mother in law की Stereotypic छवि को बदलने का बीड़ा उठाया और नारी का नारी को सम्मान करना सिखाया।
साथ ही यह लेख उन बहुओं को भी समर्पित है जिन्हें शायद ऐसी सासु मां नही मिल पाई, तो क्या हुआ वे सभी अपनी बहुओं को ऐसी सासू मां बन कर दिखाए और इस तालिबानी सिलसिले को तोड़ दे।
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                       🙏🙏🙏

Sunday, 23 June 2019

Will power is the super power

अकेला चना भी ... जी हाँ ...
अविश्वसनीय, बेजोड़ , अदभुत कहानी , आसाम में रहने वाले एक आदिवासी की जिसके कामो की गूंज ब्रह्मपुत्र की लहरों में बहते , सोंधी जंगली हवाओं में महकते , घने पेड़ो की सरसराहट से होते , हज़ारो किलोमीटर दूर दिल्ली में "राष्ट्रपति भवन"  तक पहुंची  | इस सीधे साधे आदिवासी का नाम है “जाधव पीयेंग ” | 
कहानी शुरू होने के पहले छोटी सी जानकारी:
“ब्रह्मपुत्र” नदी को पूर्वोत्तर का अभिशाप भी कहा जाता है | इसका कारण है कि जब यह आसाम तक पहुँचती है तो अपने साथ लम्बी दूरी से बहा कर लायी हुई मिटटी , रेत और पहाड़ी पथरीले अवशेष विशाल “द्रव मलबे” के रूप में लाती है , जिससे  नदी की गहराई अपेक्षाकृत कम हो चौड़ाई में फैल किनारे के गांवो को प्रभावित करती है | मानसून में इसके चौड़े पाट हर साल पेड़ पौधो , हरियाली और गांवो को अपने संग बहा ले जाते है |  ब्रह्मपुत्र नदी का विशालता से फैला हरियाली रहित , बंजर रेतीला तट लगभग रेगिस्तान लगता था |

1979 में जाधव 10 वी परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे रेतीले तट पर घूम रहे थे | तब ही उनकी नजर लगभग 100 मृत सापो के विशाल गुच्छे पर पड़ी | आगे बढ़ते गए तो पूरा नदी का किनारा मरे हुए जीव जन्तुओं से अटा पड़ा एक मरघट सा था । मृत जानवरों के शव के कारण पैर रखने की जगह नही थी | इस दर्दनाक सामूहिक निर्दोष मौत के दृश्य ने जाधव के किशोर मन को झकझोर दिया | हज़ारो की संख्या में निर्जीव जीव जन्तुओ की निस्तेज फटी मुर्दा आँखों ने जाधव को कई रात  सोने न दिया | गाँव के ही एक आदमी ने चर्चा के दौरान विचलित जाधव से कहा जब पेड़ पौधे ही नही उग रहे है तो नदी के रेतीले तटो पर जानवरों को बाढ़ से बचने आश्रय कहाँ मिले ? जंगलो के बिना इन्हें भोजन कैसे मिले ? बात जाधव के मन में पत्थर की लकीर बन गयी कि जानवरों को बचाने पेड़ पौधे लगाने होंगे |                    
                          50 बीज और 25 बॉस के पेड़ लिए 16 साल का जाधव पहुंच गया नदी के रेतीले किनारे पर रोपने | ये आज से 35 साल पुरानी बात है | उस दिन का दिन था और आज का दिन क्या आप कल्पना कर सकते है की इन 35 सालो में  जाधव ने 1360 एकड़ का जंगल बिना किसी सरकारी मदद के लगा डाला |  क्या आप भरोसा करेंगे के एक अकेले आदमी के लगाये जंगल में 5 बंगाल टाइगर ,100 से ज्यादा हिरन ,जंगली सुवर 150 जंगली हाथियों का झुण्ड , गेंडे और अनेक जंगली पशु घूम रहे है, अरे हाँ सांप भी जिससे इस अद्भुत नायक को जन्म दिया | जंगलो का क्षेत्रफल बढाने सुबह 9 बजे से पांच किलोमीटर साइकल से जाने के बाद ,नदी पार करते और दूसरी तरफ वृक्षारोपण कर फिर सांझ ढले नदी पार कर साइकल 5 किलोमीटर तय कर घर पहुँचते |  इनके लगाये पेड़ो में कटहल ,गुलमोहर ,अन्नानाश ,बांस , साल , सागौन , सीताफल, आम ,बरगद , शहतूत ,जामुन, आडू और कई औषधीय पौधे है |

लेकिन सबसे आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इस असम्भव को सत्य कर दिखाने वाले साधक से महज़ पांच साल पहले तक देश अनजान था |  ये लौहपुरुष अपने धुन में अकेला आसाम के जंगलो में साइकल में पौधो से भरा एक थैला लिए अपने बनाए जंगल में गुमनाम सफर कर रहा था | सबसे पहले वर्ष 2010 में देश की नजर में आये जब वाइल्ड फोटोग्राफर “जीतू कलिता” ने इन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई “the molai forest” | यह फिल्म देश के नामी विश्वविद्यालयों में दिखाई गयी | दूसरी फिल्म आरती श्रीवास्तव की “foresting life” जिसमे जाधव की जिन्दगी के अनछुवे पहलुओं और परेशानियों को दिखाया | तीसरी फिल्म “forest man” जो विदेशी फिल्म महोत्सव में भी काफी सराही गयी  | एक अकेला व्यक्ति वन विभाग की मदद के बिना , किसी सरकारी आर्थिक सहायता के बगैर  इतने पिछड़े इलाके से कि जिसके पास पहचान पत्र के रूप “राशन कार्ड” तक नही है ने हज़ारो एकड़ में फैला पूरा जंगल खड़ा कर दिया | जानने वाले सकते में आ गए उनके नाम पर आसाम के इन जंगलो को “मिशिंग जंगल” कहते है { जाधव आसाम की मिशिंग जनजाति से है} | जीवन यापन करने के लिए इन्होने गाये पाल रखी है | शेरो द्वारा आजीविका के साधन उनके पालतू पशुओं को खा जाने के बाद भी जंगली जानवरों के प्रति इनकी करुणा कम न हुई | शेरो ने मेरा नुकसान किया क्योकि वो अपनी भूख मिटाने खेती करना नही जानते | आप जंगल नष्ट करोगे वो आपको नष्ट करेंगे | एक साल पहले महामहिम “राष्ट्रपति” द्वारा देश के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान “पद्मश्री” से अलंकृत होने वाले जाधव आज भी आसाम में बांस के बने एक कमरे के छोटे से कच्चे झोपड़े में अपनी पुरानी में दिनचर्या लीन है | तमाम सरकारी प्रयासों , वक्षारोपण  के नाम पर लाखो रुपये के पौधों की खरीदी करके भी ये पर्यावरण , वनविभाग वो मुकाम हासिल न कर पाये जो एक अकेले की इच्छाशक्ति ने कर दिखाया  । साइकल पर जंगली पगडंडीयों में पौधो से भरे झोले और कुदाल के साथ हरी भरी प्रकृति की अनवरत साधना में ये निस्वार्थ पुजारी | ढेर शुभकामनाये जाधव जी आपने अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता कहावत गलत साबित कर दी अब तो हम कहेंगे “ *अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है*“ |

निवेदन करते हैं पर्यावरण के लिए असीम स्नेह से भीगी इस इस सार्थक , अनोखी कहानी  को दूसरो तक भी पहुंचा कर सजग बनाएं।

Wednesday, 8 May 2019

बहू की इज्जत जरूर करें

'बहू कहां मर गई?

अंदर से आवाज- जिंदा हूं माँ जी।

तो फिर मेरी चाय क्यूं अभी तक नहीं आई, कब से पूजा करके बैठी हूं

ला रही हूं माँ जी,

बहू चाय के साथ, भजिया भी ले आयी, सास ने कहा तेल का खिलाकर क्या मरोगी?

बहू ने कहा- ठीक हैं माँ जी ले जाती हूं।

सास ने कहा- रहने दे अब बना दिया हैं तो खा लेती हूं।

सास ने भजिया उठाई और कहा- कितनी गंदी भजिया बनाई हैं तुमने।

बहू- माँ जी मुझे कपड़े धोने हैं मैं जाती हूं।

बहू दरवाजे के पास छिपकर खड़ी हो गयी।

सास भजिया पर टूट पड़ी और पूरी भजिया खत्म कर दी।

बहू मुस्कुराई और काम पर लग गई।

दोपहर के खाने का वक्त हुआ। सास ने फिर आवाज लगाई- कुछ खाने को मिलेगा।

बहू ने आवाज नहीं दी।

सास फिर चिल्लाई- भूखे मारोगी क्या, बहू आयी सामने खिचड़ी रख दी।

सास गुस्से से- ये क्या है, मुझे इसे नहीं खाना इसे। ले जाओ।

बहू ने कहा- आपको डॉक्टर ने दिन में खिचड़ी खाने को कहा है, खाना तो पड़ेगा ही।

सास मुंह बनाते हुए, हाँ तू मेरी माँ बन जा, बहू फिर मुस्कुराई और चली गई।

आज इनके घर पूजा थी

, बहू सुबह 4 बजे से उठ गयी। पहले स्नान किया, फिर फूल लाई। माला बनाई। रसोई साफ की। पकवान और भोज बनाया। सुबह के 10 बज गए।

अब सास भी उठ चुकी थी। बहू अब पंडित जी के साथ भगवान के वस्त्र तैयार कर रही थी।

आज ऑफिस की छुट्टी भी थीय़ उनके पति भी घर पर थे।

पूजा शुरू हुई,

सास चिल्लाती बहू ये नहीं है, वो नही है।

बहू दौड़ी-दौड़ी आती और सब करती।

अब दोपहर के 3 बज गये थे, आरती की तैयारी चल रही थी, पंडित जी ने सबको आरती के लिए बुलाया और सबके हाथों में थाली दी, जैसे ही बहू ने थाली पकड़ी, थाली हाथों से गिर पड़ी। शायद भोज बनाते हुए बहू के हाथों मे तेल लगा था, जिसे वो पोंछना भूल गयी थी।

सारे लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। कैसी बहू है, कुछ नहीं आता। एक काम भी ठीक से नहीं कर सकती। ना जाने कैसी बहू उठा लाए। एक आरती की थाली भी संभाल नहीं सकीय़

उसके पति भी गुस्सा हो गए पर सास चुप रही। कुछ नहीं कहा। बस यही बोल के छोड़ दिया सीख रही है, सब सीख जाएगी धीरे-धीरे।

अब सबको खाना परोसा जाने लगा, बहू दौड़-दौड़ के खाना देती, फिर पानी लाती। करीब 70- 80 लोग हो गये थे, इधर दो नौकर और बहू अकेली फिर भी वहाँ सारा काम, बहुत ही अच्छे तरीके से करती।

अब उसकी सास और कुछ आसपड़ोस के लोग खाने पर बैठे, बहू ने खाना परोसना शुरू किया, सब को खाना दे दिया गया,

जैसे ही पहला निवाला सास ने खाया- तुमने नमक ठीक नहीं डाला क्या। एक काम ठीक से नहीं करती। पता नहीं मेरे बाद कैसे ये घर संभालेगी।

आस-पड़ोस वालों को तो जानते ही हो ना साहब। वो बस बहाना ढूंढते हैं नुक्स निकालने का। फिर वो सब शुरू हो गये, ऐसा खाना है, ऐसी बहू है, ये वो वगैरहा-वगैरहा। दिन का खाना हो चुका था, अब बहू बर्तन साफ करने नौकरों के साथ लग गई।

रात में जगराता का कार्यक्रम रखा गया था।

बहू ने भी एक दो गीत गाने के लिए स्टेज पर चढ़ी।

सास जोर से चिल्लाई- मेरी नाक मत कटा देना, गाना नहीं आता तो मत गा, वापस आ जा।

बहू मुस्कुराई और गाने लगी।

सबने उसके गाने की तारीफ की, पर सास मुंह फूलाते हुए बोली, इससे अच्छा तो मैं गाती थी जवानी में, तुझे तो कुछ भी नहीं आता। बहू मुस्कुराई और चली गई।

अब रात का खाना खिलाया जा रहा था।

उसके पति के ऑफिस के दोस्त साइड में ही ड्रिंक करने लगे। उसका पति चिल्लाता थोड़ा बर्फ लाओ, तो सास चिल्लाती यहाँ दाल नहीं है, फिर चिल्लाता कोल्ड ड्रिंग नहीं है, पापड़ ले आओ।

इधर-उधर आखिरी में उसके पति की शराब गिर पड़ी उसके एक दोस्त पर और बोलत टूट गई।

पति गुस्से में दो झापड़ अपनी पत्नी को लगाते हुए कहता है- जाहिल कहीं की। देखकर नहीं कर सकती। तुझे इतना भी काम नहीं आता।

सारे लोग देखने लगे। उसकी पत्नी रोते हुए कमरे की तरफ दौड़ी, फिर उसके दोस्तों ने कहा- क्या यार पूरा मूड खराब कर दिया, यहाँ नहीं बुलाया होता, हम कहीं और पार्टी कर लेते। कैसी अनपढ़-गंवार बीवी ला रखी है तूने। उसे तो मेहमानों की इज्जत और काम करना तक नहीं आता, तुमने तो हमारी बेईजती कर दी।

अब आस पड़ोस की औरतों को और बहाना मिल गया था। वो कहने लगीं, देखो क्या कर दिया तुम्हारी बहू ने। कोई काम कीं नही है। मैं तो कहती हूं अपने बेटे की दूसरी शादी करा दो, छुटकारा पाओ इस गंवार से।

सास उठी और अपने बेटे के पास जाकर उसे थप्पड़ मारा और कहा- अरे नालायक, तुमने मेरी बहू को मारा, तेरी हिम्मत कैसे हुई। तेरी टाँग तोड़ दूंगी, उसके बेटे के दोस्त कुछ कहने ही वाले थे कि उसकी माँ ने घूरते हुए- कहा चुप बिल्कुल चुप। यहाँ दारू पीने आये हो, जबकि पता है आज पूजा है और तुम्हें पार्टी करनी है, कैसे संस्कार दिये हैं तुम्हारे, माता-पिता ने।

और किसने मेरी बहू को जाहिल बोला, जरा इधर आओ। चप्पल से मारूंगी अगर मेरी बहू को किसी ने शब्द भी कहा तो। अरे पापी, तूने उस लड़की को बस इसलिए मारा कि तेरी शराब टूट गयी, पापी वो बच्ची सुबह चार बजे से उठी है। घर का सारा काम कर रही है। ना सुबह से नाश्ता किया ना दिन का खाना खाया। फिर भी हंसते हुए सबकी बातें सुनते हुए, ताने सुनते हुए घर के काम में लगी रही। तेरे यार दोस्तो को वो अच्छी नहीं लगी। जूते से मारूंगी तेरे दोस्तों को जो कभी उन्होंने ऐसा कहा।

उसके यार दोस्त चुपके से खिसक लिए।

अब सास, बहू के कमरे मे गयी, और बहू का हाथ पकड़कर बाहर लाई। सबके सामने कहने लगी, किसने कहा था अपनी बहू को घर से निकाल के दूसरी बहू ले आना। जरा सामने आओ।

कोई सामने नहीं आया।

फिर सास ने कहा, तुम जानते भी क्या हो इस लड़की के बारें में। ये मेरी "माँ" भी है, बेटी भी।

माँ इसलिए मुझे गलत काम करने पर डाँटती हैं और बेटी इसलिए, कभी-कभी मेरी दिल की भावनाएं समझ जाती हैं। मेरी दिन-रात सेवा करती है। मेरे हजार ताने सुनती है पर एक शब्द भी गलत नहीं कहती। ना सामने ना पीठ पीछे,और तुम कहते हो, दूसरी बहू ले आऊं।

याद है ना छुटकी की दादी,

अपनी बहू की करतूत, सास ने गुस्से से पड़ोस की महिला को कहा, अभी पिछले हफ्ते ही तुम्हें मियां-बीवी भूखे छोड़ घूमने चले गये थे। मेरी इसी बहू ने 7 दिनों तक तुम्हारे घर पर खाना-पानी यहाँ तक कि तुम्हारे पैर दबाने जाती थी और तुम इसे जाहिल बोलती हो। जाहिल तो तुम सब हो जो कोयले और हीरे में फर्क नही जानते। अगर आइंदा मेरी बहू के बारे में किसी ने एक लफ्ज भी बोला तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा क्यूंकि ये मेरी बहू नहीं, मेरी बेटी है।

बहू_सिसकियाँ लेते हुये फिर कमरें में चली गई।

सास ने एक प्लेट उठायी और भोजन परोसा और बहू के कमरे में खुद ले गयी, सास को भोजन लाते देखा तो बहू ने कहा- अरे माँ जी आप क्या कर रही हों, मैं खुद ले लेती। सास ने प्यार से ताना मारते हुये कहा, डर मत इसमें जहर नही हैं, मार नहीं डालूंगी तुझे। तुझे नई सास चाहिए होगी, पर मुझे अभी भी तू ही मेरे घर की बहू चाहिए

बहू ने अपनी सास को रोते हुए गले से लगा लिया।

सास भी रो दी पहली बार और कहा- चल खाना खा ले। फिर उसके आंसू पोंछते हुए बोली...... अरे तु मेरी बहु नही मेरी बेटी है......

कुछ रिश्ते बहुत मीठे होते हैं, बस बातें कड़वी होती है.....

बहु को प्यार देकर देखो...वो तुम्हारे परिवार के लिए अपने घर का आँगन छोडकर आती है।
#Brain_Engineering
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Wednesday, 3 April 2019

Power of appreciation

#एक_सुंदर_सीख❤🙏

एक पत्नी ने अपने पति से आग्रह किया कि वह उसकी छह कमियाँ बताए।
जिन्हें सुधारने से वह बेहतर पत्नी बन जाए.
पति यह सुनकर हैरान रह गया और असमंजस की स्थिति में पड़ गया.
उसने सोचा कि मैं बड़ी आसानी से उसे 6 ऐसी बातों की सूची थमा सकता हूँ जिनमें सुधार की जरूरत थी
और ईश्वर जानता है कि वह ऐसी 60 बातों की सूची थमा सकती थी, जिसमें मुझे सुधार की जरूरत थी.
परंतु पति ने ऐसा नहीं किया और कहा -
'मुझे इस बारे में सोचने का समय दो,
मैं तुम्हें सुबह इसका जबाब दे दूँगा.'
पति अगली सुबह जल्दी ऑफिस गया और फूल वाले को फोन करके उसने अपनी पत्नी के लिए छह गुलाबों का तोहफा भिजवाने के लिए कहा जिसके साथ यह चिट्ठी लगी हो,
"मुझे तुम्हारी छह कमियाँ नहीं मालूम, जिनमें सुधार की जरूरत है.
तुम जैसी भी हो मुझे बहुत अच्छी लगती हो."
उस शाम पति जब आफिस से लौटा तो देखा कि उसकी पत्नी दरवाज़े पर खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी,
उसकी आंखौं में आँसू भरे हुए थे, यह कहने की जरूरत नहीं कि उनके जीवन की मिठास कुछ और बढ़ गयी थी।
पति इस बात पर बहुत खुश था कि पत्नी के आग्रह के बावजूद उसने उसकी छह कमियों की सूची नहीं दी थी.
इसलिए यथासंभव जीवन में सराहना करने में कंजूसी न करें दीप और आलोचना से बचकर रहने में ही समझदारी है।
ज़िन्दगी का ये हुनर भी,
आज़माना चाहिए,
जंग अगर अपनों से हो,
तो हार जाना चाहिए.

पसीना उम्र भर का उसकी गोद में सूख जाएगा,

हमसफ़र क्या चीज है ये बुढ़ापे में समझ आएगा.

#Respect_Your_Wife👸🇮🇳🙏
#Deep💔👈
#Brain_Engineering
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Best Parenting Solution

"बाज़" ऐसा पक्षी जिसे हम ईगल भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को ...