Sunday, 15 January 2017

Always improve yourself

एक प्रसिद्ध मूर्तिकार अपने पुत्र को मूर्तिबनाने की कला में दक्ष करना चाहता था। उसका पुत्र भी लगन और मेहनत से कुछ समय बाद बेहद खूबसूरत मूर्तियाँ बनाने लगा। उसकी आकर्षक मूर्तियों से लोग भी प्रभावित होने लगे। लेकिन उसका पिता उसकी बनाई मूर्तियों में कोई न कोई कमी बता देता था। उसने और कठिन अभ्यास से मूर्तियाँ बनानी जारी रखीं। ताकि अपने पिता की प्रशंसा पा सके। शीघ्र ही उसकी कला में और निखार आया। फिर भी उसके पिता ने किसी भी मूर्ति के बारे में प्रशंसा नहीं की।
निराश युवक ने एक दिन अपनी बनाई एक आकर्षक मूर्ति अपने एक कलाकार मित्र के द्वारा अपने पिता के पास भिजवाई और अपने पिता की प्रतिक्रिया जानने के लिये स्वयं ओट में छिप गया। पिता ने उस मूर्ति को देखकर कला की भूरि भूरि प्रशंसा की और बनानेवाले मूर्तिकार को महान कलाकार भी घोषित किया। पिता के मुँह से प्रशंसा सुन छिपा पुत्र बाहर आया और गर्व से बोला-"पिताजी वह मूर्तिकार मैं ही हूँ। यह मूर्ति मेरी ही बनाई हुई है। इसमें आपने कोई कमी नहीं निकाली। आखिर आज आपको मानना ही पड़ाकि मैं एक महान कलाकार हूँ।"
पुत्र की बात पर पिता बोला,"बेटा एक बात हमेशा याद रखना कि अभिमान व्यक्ति की प्रगति के सारे दरवाजे बंद कर देता है। आज तक मैंने तुम्हारी प्रशंसा नहीं की। इसीसे तुम अपनी कला में निखार लाते रहे अगर आज यह नाटक तुमने अपनी प्रशंसा केलिये ही रचा है तो इससे तुम्हारी ही प्रगति में बाधा आएगी। और अभिमान के कारण तुम आगे नहीं पढ़ पाओगे।"
पिता की बातें सुन पुत्र को गलती का अहसास हुआ। और पिता से क्षमा माँगकर अपनी कला को और अधिक निखारने का संकल्प लिया।

No comments:

Post a Comment

Best Parenting Solution

"बाज़" ऐसा पक्षी जिसे हम ईगल भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को ...